किस्सा किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के
— सुमित धनखड़
बात 2008 की है। किसान नेता बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के एक बयान पर बवाल मच गया। टिकैत समेत 14 लोगों पर मुकदमा हो गया। सरकार ने हुक्म दिया कि टिकैत को गिरफ्तार कर लिया जाए। फोर्स बाबा के गांव सिसौली में जम गई। उधर किसानों ने गांव में घुसने के रास्ते बंद कर दिए। संघर्ष भी जोरदार हुआ। अतिरिक्त फोर्स बुलाई गई। फिर पीएसी आयी। फिर पैरा मिलिट्री आयी। गांव वालों ने किसी को भीतर पैर नहीं रखने दिया। तत्कालीन गृह सचिव जेएन चंबर ने एक टुकड़ी विशेष विमान से भेजी। सब बेकार। 3 दिन हो गए। फोर्स टिकैत को गिरफ्तार करना तो दूर, अंदर नहीं जा सका। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने बाबा टिकैत से बात की। बाबा ने कहा-ठीक है, मैं सरेंडर कर दूंगा। क्योंकि मेरी वजह से गांव की शांति न बिगड़े। बाबा ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया। उसी दिन जमानत मिल गयी। पर उन चार दिनों में सब जान गए कि बाबा टिकैत क्या हैं।
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( ये कहानी इसलिए सुना रहा हूं कि टिक टॉक और फेसबुक के दौर की पीढ़ी ने कभी ठीक से किसान देखे नहीं। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने 7 साल पहले ही आंखें खोली हैं )
(Usha Singh के फेसबुक वॉल से साभार)