बुल चला गया आप नहीं जानते
एक बैल की कहानी ..!!
Rajeev Kumar-
वर्ष था 1950, भारत को आजाद हुए कुछ ही वक्त बीता था। देहरादून का इंडियन मिलिट्री ऐकेडमी के ज्वाइंट सर्विसेज विंग में सेना, एयरफोर्स और नेवी के कैडेट्स की साझा ट्रेनिंग चल रही थी (क्योंकि उस वक्त तक खडगवासला में नेशनल डिफेंस ऐकेडमी पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं हुई थी।)
एक सत्रह साल के कैडेट को बाॅक्सिंग रिंग में अपने सीनियर बैच के कैडेट का मुकाबला करना था। वो सीनियर कैडेट बड़ा ही ब्रिलियेंट और बेहतरीन बाॅक्सर था।
वो सीनियर बैच का कैडेट था, भविष्य का भारतीय सेना का सेनाध्यक्ष जनरल S.F. राॅड्रिग्स जिस का बाॅक्सिंग रिंग में दबदबा रहता था।
उसके सामने था सत्रह साल का जूनियर कैडेट नरेन्द्र कुमार शर्मा। पाकिस्तान के रावलपिंडी में पैदा हुआ वो लड़का, जिसका परिवार देश के विभाजन के समय भागकर भारत आया था। घमासान बाॅक्सिंग मैच हुआ और भविष्य के सेनाध्यक्ष ने जूनियर कैडेट नरेन्द्र कुमार शर्मा का भूत बनाकर रख दिया।
वो जूनियर लडका बुरी तरह पिटा, मगर पीछे नहीं हटा। बार बार पलटकर आता, मारता और मार भी खाता मगर पीछे हटने को तैयार ना होता। अंतत: कैडेट S.F. राॅड्रिग्स ने वो मुकाबला जीत लिया। जूनियर कैडेट बुरी तरह पिटकर हारा जरूर मगर उसी बाॅक्सिंग मैच में मैच देखने वाले कैडेट्स ने उसको एक #निकनेम दे दिया। जो जीवन भर उसके नाम से चिपका रहा। वो निकनेम था #BULL यानि बैल !
वो बैल मात्र तीन दिन पहले दिल्ली के धौलाकुंआ स्थित आर्मी के R.R. हाॅस्पिटल में अपनी जिंदगी का आखिरी मुकाबला, मौत से हार गया। देश का एक हीरो चुपचाप दुनिया से चला गया Unknown and unsung ….बहुत कम लोगों को ये मालूम है नरेन्द्र कुमार “बुल” आखिर थे कौन ?
वो बंदा फौज में कर्नल से आगे नहीं बढ़ सका, क्योंकि हमेशा बर्फीले पहाड़ों की चोटियां लाँघते उस बैल के पैरों में एक भी उंगली नहीं बची थी। उसके लगातार मिशन चलते रहे। सारी उंगलियां गलकर गिर गईं। अपंग हुए, मगर उनके मिशन नहीं रुके।
आज अगर भारत देश #सियाचीन_ग्लेशियर पर बैठा है, अगर भारत ग्लेशियरों की उन ऊँचाइयों का मास्टर है, एक एक रास्ते का जानकार है और पाकिस्तान को सियाचिन से दूर रखने में कामयाब रहा है, तो उसका श्रेय मात्र एक ही व्यक्ति को जाता है, वो थे कर्नल नरेन्द्र कुमार शर्मा यानि नरेन्द्र “बुल ” कुमार !
उन सुनसान बर्फीले ग्लेशियरों पर शून्य से 60° कम तापमान में अपने देश की खातिर बुल ने ना जाने कितने अभियानों का नेतृत्व किया। नक्शे बनाये, उस दुर्गम क्षेत्र की एक एक जानकारी हासिल की। उनके नक्शे, फोटोग्राफ, भारत की ग्लेशियर पर विजय का आधार स्तंभ बने।
इलाके में विदेशी पर्वतारोही अभियानों और पाकिस्तानी दखल की जानकारी भारत और दुनिया को दी। उन रास्तों का पता लगाया, उनकी स्थिति नक्शे, फोटोग्राफ जहाँ से पाकिस्तानी सियाचीन पर कब्जा करने की ताक में थे। वो सब अपने सैनिकों को दी।
यही वजह थी कि सरकार ने ऑपरेशन #मेघदूत जिसके जरिये सियाचीन पर कब्जा किया था। उस ऑपरेशन की जिम्मेदारी नरेन्द्र बुल कुमार की अपनी रेजीमेंट यानि #कुमायूँ_रेजीमेंट को दी थी।
पूरा देश नरेन्द्र “बुल” का ऋणी है। जिन्होंने अपने शरीर के अंगों को बर्फ में गलाकर, सालों साल दुर्गम ग्लेशियरों में बिताकर, असंख्य चोटियाें पर पर्वतारोही अभियानों में फतह हासिल की। जो सही मायने में Father of siachen glacier कहलाने का हकदार है।
वो शानदार पर्वतारोही, ग्लेशियरों का सरताज, कर्नल नरेन्द्र “बुल कुमार 31 दिसम्बर 2020 को चल बसा। मगर अफसोस देश के लोग उस जियाले हीरो के नाम तक से परिचित नहीं हैं। देश का हीरो, एक नायक, गुमनामी में रहकर ही चल बसा।
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