— वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक रंजन डॉ लोहिया के व्यक्तित्व पर
कालाकांकर राजघराने से सम्बद्ध ब्रजेश सिंह और डॉ. राममनोहर लोहिया के बीच अच्छी मित्रता थी। सोवियत संघ के पूर्व शासक जोसेफ़ स्टालिन की पुत्री स्वेतलाना से उन्होंने प्रेम विवाह किया था।
1964 में ब्रजेश सिंह ने स्वेतलाना से मिलाने के लिए डॉ.लोहिया को लंदन बुलाया। अपने मित्र के आग्रह पर लोहिया जी लंदन गए। वहीं से उन्हें काबुल जाना था खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान से मिलने।
बहरहाल,एक हफ़्ता लंदन प्रवास के बाद लोहिया जी काबुल के लिए रवाना हुए। शाम छह बजे उन्हें पहुंचना था, लेकिन किसी कारणवश वह रात ग्यारह बजे पहुंचे। खान साहब खाने की मेज पर काफ़ी देर से लोहिया जी का इंतज़ार करते रहे।
जब उन्हें लगा कि अब लोहिया नहीं आएंगे तो उन्होंने अकेले भोजन करने का फ़ैसला किया। अचानक डॉ.लोहिया हाज़िर हुए और खान साहब से कहा जोरों की भूख लगी है।
भोजन में सिर्फ मांसाहारी व्यंजन थे। और डॉ.लोहिया ठहरे शाकाहारी। रात काफ़ी हो चुकी थी,इसलिए सादा भोजन का प्रबंध भी मुश्किल था। खान साहब दुविधा में पड़ गए कि लोहिया को क्या खिलाया जाए? लोहिया ने प्लेट उठायी तीन-चार रोटियां ली और एक कटोरे में मीट का झोर (ग्रेवी) लेकर प्रसन्नता से खाने लगे।
खान साहब यह देखकर हैरान! भोजन उपरांत दोनों के बीच लंबी वार्ता हुई और आख़िरी मुलाकात भी। 12 अक्टूबर 1967 को डॉ.राममनोहर लोहिया का असामयिक निधन हो गया। उन्हें श्रद्धांजलि देने खान साहब दिल्ली आए थे।